गुरुवार, 11 सितंबर 2014

ज़िन्दगी

मुसलसल हादसों से
कुछ यूँ गुज़री है ज़िन्दगी
कभी आराम से बैठे तो
लगता है कि मर गए हैं

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

चश्मा

जब न था चश्मा मयस्सर तब निगाहें उठती नहीं थीं ।
अब वे आए हैं चश्मा चढ़ा कर निगाह चार करने

बुधवार, 3 सितंबर 2014

अचानक

चलते चलते अचानक पीछे मुङकर देखा...
तो कुछ यादें हँस रहीं थी, और कुछ रिश्ते दम तोड़ रहे थे।