इधर उधर से
गुरुवार, 11 सितंबर 2014
ज़िन्दगी
मुसलसल हादसों से
कुछ यूँ गुज़री है ज़िन्दगी
कभी आराम से बैठे तो
लगता है कि मर गए हैं
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