इधर उधर से
रविवार, 1 फ़रवरी 2015
काग़ज़ की नाव
इतनी सी बात थी जो समन्दर को खल गई ।
काग़ज़ की नाव कैसे भँवर से निकल गई!
-हसीब सोज़
4 टिप्पणियां:
दिगम्बर नासवा
1 फ़रवरी 2015 को 2:12 pm बजे
क्या बात है .. लाजवाब शेर ...
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बी एस पाबला
22 फ़रवरी 2015 को 8:53 pm बजे
शुक्रिया दिगंबर जी
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Likhmaram jyani
1 फ़रवरी 2015 को 10:43 pm बजे
लाजवाब जी।
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बी एस पाबला
22 फ़रवरी 2015 को 8:54 pm बजे
शुक्रिया लिखमाराम जी
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क्या बात है .. लाजवाब शेर ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दिगंबर जी
हटाएंलाजवाब जी।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया लिखमाराम जी
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